Jo Bhi Darbar Me Aaya Vo Ab Tumhara Hai
जो भी दरबार मे आया वो अब तुम्हारा है
तर्ज – कभी कभी मेरे दिल मे ख्याल आता है / तेरी गलियों का हूँ आशिक़
जो भी दरबार मे आया वो अब तुम्हारा है
तू ही माँझी तू ही साथी तू सहारा है
मेरे बाबा मेरे मालिक भटक रहा हूँ मै
मुझको मालूम नही कैसे और कहाँ हूँ मै
तेरे बिन और न दूजा अब हमारा है
तुझको आवाज लगाता हूँ, तेरी जरूरत है ।।
तेरे बिन पार न पाऊँगा, ये हकीकत है ।।
हमने भी सोच समझ के तुम्हे पुकारा है ।।
तेरी खामोशियों से मेरा दम निकलता है
मेरे इस हाल पे तू चुप है दिल ये जलता है
तू अगर खुश है इसी में तो ये गँवारा है
तेरी चौखट पे मै आया हूँ कुछ उम्मीदों से
तेरे दरबार मे थोड़ी सी जगह दे दो मुझे
सारी दुनिया में कहीं भी ना गुजारा है ।।