ना देना चाहे कुबेर का धन मगर सलीका शहूर देना उठा के सिर जी सकूँ जहां में इतनी इज्जत जरूर देना (Naa Dena Chahe Kuber Ka Dhan Magar Salika Sahur Dena Utha Ke Sar Jee Saku Janha Me Itani Ijat Jarur Dena)

Naa Dena Chahe Kuber Ka Dhan Magar Salika Sahur Dena Utha Ke Sar Jee Saku Janha Me Itani Ijat Jarur Dena
ना देना चाहे कुबेर का धन मगर सलीका शहूर देना उठा के सिर जी सकूँ जहां में इतनी इज्जत जरूर देना

 

तर्ज – जिहाले मस्ती

 

ना देना चाहे कुबेर का धन,
मगर सलीका-शहूर देना,
उठा के सिर जी सकूँ जहां में,
तूं इतनी इज्जत जरूर देना ।।
तुम्हारी रहमत सदा ही बरसे,
हजारों सुख भोगूँ इस जहां के,
अमीर बनकर हसूँ किसी पर,
मुझे न इतना गुरूर देना ।।
ना देना चाहे कुबेर का धन…..
न बैर कोई न कोई नफरत,
नजर ना आये कहीं बुराई,
हर दिल में तूं ही तूं दे दिखाई,
मेरी नजर को वो नूर देना ।।
ना देना चाहे कुबेर का धन…..
तेरी इनायत की रोशनी में,
भलाई का पथ ही दे दिखाई,
मैं प्यार देकर लूँ और का ग़म,
तूं ऐसी फितरत हुजूर देना ।।
ना देना चाहे कुबेर का धन…..
बड़ी ना माँगू मैं चीज तुमसे,
औकात जितनी है माँगता हूँ,
जो घाव दुख ने किये हैं दिल में,
वो सुख की मरहम से पूर देना ।।
ना देना चाहे कुबेर का धन…..
खुशी या ग़म ना हो पास मेरे,
तुम्हारे गुण जब में गाऊँ दाता,
तेरी इबादत में आये मस्ती,
दुआ में इतना सुरूर देना ।।
ना देना चाहे कुबेर का धन…..
मिलेगी रहमत तुम्हें श्याम की,
मगर है ये शर्त कि साफ दिल हो,
अगर गजेसिंह हो खोट दिल में,
तो खोट का सिर तूं चूर देना ।।
ना देना चाहे कुबेर का धन…..
श्री गजेसिंह तँवर द्वारा जिहाले मस्ती (ग़ुलामी) गीत की तर्ज़ पर आधारित अनुपम रचना ।

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