Jid Hai Kanhiya Bigdi Banado Marke Thokar ya fir hasti Mitado
जिद है कन्हैया बिगड़ी बनादो मार के ठोकर या फिर हस्ती मिटादो
तर्ज – सागर किनारे दिल ये पुकारे
जिद है कन्हैया बिगड़ी बनादो,
मार के ठोकर या फिर, हस्ती मिटादो ।।
बरसे जो तूं तो, कुटिया टपकती,
ना बरसे तो, खेती तरसती,
बरबस ही मेरी, आँखें बरसती,
माँगूं क्या तुमसे, तुम ही बतादो ।।
मार के ठोकर या फिर…..
रोता हूँ जब मैं, हँसती है दुनिया,
सेवक पे ताने, कसती है दुनिया,
गरीबी पे मेरी, बरसती है दुनिया,
पौंछ के आँसू, अब तो हँसा दो ।।
मार के ठोकर या फिर…..
तेरे सिवा कोई, हमारा नहीं हैं,
बिन तेरे अपना, गुजारा नहीं है,
हाथों को दर-दर, पसारा नहीं है,
जाऊँ कहाँ मैं, तुम ही बतादो ।।
मार के ठोकर या फिर…..
होश सम्हाला जबसे, तुमको निहारा,
सुख हो या दुःख बाबा, तुमको पुकारा,
आज तेरा सेवक क्यूँ, भटके मारा-मारा,
अपना वो जलवा, फिर से दिखादो ।।
मार के ठोकर या फिर…..
‘रोमी’ ये तुमसे, अर्ज़ी लगाये,
दर-दर सिर मेरा, झुकने ना पाये,
तेरी ही मर्ज़ी दाता, जैसे नचाये,
दरबार में मुझको, अपने नचादो ।।
मार के ठोकर या फिर…..
श्री हरमहेन्द्र पाल सिंह ‘रोमी’ द्वारा ‘सागर किनारे, दिल ये पुकारे’ गीत की तर्ज़ पर रचित अनुपम रचना ।