Bigadi Meri Bana De Ae Shero Wali Maiya
बिगड़ी मेरी बनादे ए शेरों वाली मैया
तर्ज – परम्परागत
||दोहा||
|| सदा पापी से पापी को तुम भव सिंदु तारी हो
कश्ती मझधार में नैया को भी पल में उभारी हो
ना जाने कोन ऐसी भूल मुझ से हो गयी मैया
तुमने अपने इस बालक को मैया मन से बिसारी हो ||
बिगड़ी मेरी बनादे ए शेरों वाली मैया
अपना मुझे बनाले ए मेहरों वाली मैया ।।
दर्शन को मेरी अखियाँ कब से तरस रहीं हैं
सावन के जैसे झर झर अखियाँ बरस रहीं हैं
दर पे मुझे बुला ले, ए शेरों वाली मैया ।
आते हैं तेरे दर पे, दुनिया के नर और नारी
सुनती हो सब की विनती, मेरी मैया शेरों वाली
मुझ को दर्श दिखा दे, ए मेहरों वाली मैया ।
शर्मा पे शेरों वाली, द्रष्टि दया की कर माँ,
चरणों की धूल देकर, लक्खा की झोली भर माँ,
मरते को अब जिलादे, ऐ शेरों वाली मैया ।