ऐ जी म्हारै श्यामधणी खाटू वाळै को जळवो न्यारो है (Eji Mahare Shyam Dhani Khatu Wale Ko Jalwo Nayaro Hai)

Eji Mahare Shyam Dhani Khatu Wale Ko Jalwo Nayaro Hai
ऐ जी म्हारै श्यामधणी खाटू वाळै को जळवो न्यारो है

 

तर्ज – हो रह्यो बाबा की नगरी मं

 

ऐ जी म्हारै श्यामधणी खाटू वाळै को,
जळवो न्यारो है ।।

 

स्वर्ण मुकुट कानां मं कुण्डल,
नैण बणै प्रभु के नभमंडल,
दर्शन करले रे मनवा चल,
नख बेसर मुख पान रच्यो, दिलदार हमारो है ।।
ऐ जी म्हारै श्यामधणी खाटू…..

 

हीरा जड़ियो हार गळै मं,
गलपटियो गुलजार गळै मं,
कैरूं को भण्डार गळै मं,
जे मेरी ले मान, दूध को भरयो दुहारो है ।।
ऐ जी म्हारै श्यामधणी खाटू…..

 

पाण्डव वंश उजागर किन्यो,
शीश दान हरि कूँ दे दिन्यो,
दीन जान मोहे अपना लिन्यो,
अटकी करदे पर, विपद मं श्याम सहारो है ।।
ऐ जी म्हारै श्यामधणी खाटू…..

 

श्यामबहादुर वो बिगड़ी नै,
बणा देवै तेरी एक घड़ी मं,
आडो आवै भीड़ पड़ी मं,
मनड़ै की तेरी बात, ‘शिव’ वोही जानणहारो है ।।
ऐ जी म्हारै श्यामधणी खाटू…..

 

श्रद्धेय स्व. शिवचरणजी भीमराजका ‘शिव’  द्वारा ‘रसिया’ (हो रह्यो बाबा की नगरी मं) तर्ज़ पर रचित भावपूर्ण रचना ।

 

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