Thaare Se Aankh Milai Ho Rangila Kanha
थारै सैं आँख मिलाई हो रंगीला कान्हा
तर्ज – माँड / भजनां सैं लागै मीरां मीठी
थारै सैं आँख मिलाई हो रंगीला कान्हा,
थारै सैं आँख मिलाई ।।
बैठ्या बैठ्या म्है तो रोग लगायो,
दूजा नै बोलां इब कांई हो रंगीला कान्हा ।
थारै सैं आँख मिलाई ।।
थारी मुरलिया म्हारो जीव दुखावै,
मोकूँ निगौड़ी भरमाई हो रंगीला कान्हा ।
थारै सैं आँख मिलाई ।।
साँची कहूँ तो छैला घणी लाज आवै,
या मेरी नींद उड़ाई हो रंगीला कान्हा ।
थारै सैं आँख मिलाई ।।
नन्दबाबा की साँवरा धेनू चरावो,
यांकी लटक मन भाई हो रंगीला कान्हा ।
थारै सैं आँख मिलाई ।।
मधुर मधुर मुस्कावणों थारो,
दरदी की या ही दवाई हो रंगीला कान्हा ।
थारै सैं आँख मिलाई ।।
हिवड़ै को हाल थानै कांई सुणाऊँ,
मानै ना जीव हरजाई हो रंगीला कान्हा ।
थारै सैं आँख मिलाई ।।
श्यामबहादुर साँवरा सलूणा,
‘शिव’ कै भी लगन लगाई हो रंगीला कान्हा ।
थारै सैं आँख मिलाई ।।
श्रद्धेय स्व. शिवचरणजी भीमराजका ‘शिव’ द्वारा राजस्थानी तर्ज़ ‘माँड’ (भजनां सैं लागै मीरां मीठी ओ मेवाड़ी राणा) पर रचित अनमोल रचना ।
।। श्री श्याम आशीर्वाद ।।
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।। श्याम भक्त जग में बड़े उनको करू प्रणाम ।।
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