बनड़ो सो लागै रे सज धज के म्हारो साँवरो (Bando So Laage Saj Dhaj Ke Maharo Sanwaro)

Bando So Laage Saj Dhaj Ke Maharo Sanwaro
बनड़ो सो लागै रे सज धज के म्हारो साँवरो

 

तर्ज – झुमका गिरा रे

 

बनड़ो सो लागै रे, सज-धज के म्हारो साँवरो ।।

 

मोर पांखडी मुकुट में सोहे, मोहे कुण्डल प्यारा,
माथे चंदन टीका सोहे, काजळ का लश्कारा,
देखले सोणी सूरत जो भी, वो तो दिल है हारा,
मोटे-मोटे नैनण का है, दीवाना जग सारा ।।
बनड़ो सो लागै रे, सज-धज के……

 

हीरों का है हार चमकता, मोरछड़ी इतरावै,
घड़ी-घड़ी में साँवरिया भी, रंग कई दिखलावै,
ऐसा सुन्दर रूप देखके,चन्दा भी शरमावै,
प्रेमी जो भी खाटू आवै, देख छवि लुट जावै ।।
बनड़ो सो लागै रे, सज-धज के……

 

होठों की मुस्कान गजब है, चित्तवन जादूगारी,
गजरां रो सिणगार सुहाणो, लड़ियां लटकै प्यारी,
बागा है पचरंगी श्याम का, फूलां री फुलवारी,
इत्तर की खुशबू से महके, श्याम नगरिया सारी ।।
बनड़ो सो लागै रे, सज-धज के……

 

अरे देखो-देखो बाबो म्हारो, मंद-मंद मुस्कावै,
श्याम सलूणो बांकी अदा सैं, म्हारो चैन चुरावै,
‘रजनी’ के जब नैण मिले तो, 
दिल फिसला ही जावै,
‘चोखानी’ बलिहार साँवरो, प्रेम सुधा बरसावै ।।
बनड़ो सो लागै रे, सज-धज के……

 

श्री प्रमोद चौखानी द्वारा ‘झुमका गिरा रे, बरेली के बाजार में’ गीत की तर्ज़ पर रचित अनुपम रचना ।

 

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