दरबार में आकर दाता के हम दर्द सुनाना भूल गये (Darbar Me Aakar Data Ke Hum Dard Sunana Bhul Gye)

Darbar Me Aakar Data Ke Hum Dard Sunana Bhul Gye
दरबार में आकर दाता के हम दर्द सुनाना भूल गये

 

तर्ज – गजल / बजरंगबली मेरी नाव चली
दरबार में आकर दाता के, 
हम दर्द सुनाना भूल गये,
देखे जो हजारो दीन-दुखी, 
हम अपना फ़साना भूल गये ।।

 

अश्कों से भरी लाखों आँखें, 
बेचैन सी हैं कुछ पाने को,
संसार समन्दर के मांझी, 
क्या नाव चलाना भूल गये ।।
दरबार में आकर दाता के…

 

जाने-पहचाने मुद्दत के,
प्रभु आशा लेकर आये हैं,
क्या चाहने वालों को अपने,
सीने से लगाना भूल गये ।।
दरबार में आकर दाता के…

 

कहीं चीर बने बड़वीर बने,
निज भक्तों की तकदीर बने,
हे दीनबन्धु क्या गीता के,
वादे को निभाना भूल गये ।।
दरबार में आकर दाता के…

 

श्री श्यामबहादुर भक्त बड़े,
दरबार के प्रेम पुजारी थे,
दाता से वही ‘शिव’ का नाता,
क्या नैण मिलाना भूल गये ।।
दरबार में आकर दाता के…

 

श्रद्धेय स्व. शिवचरणजी भीमराजका द्वारा रचित ‘ग़ज़ल’ (भजन) / ‘बजरंगबली मेरी नाव चली भजन की तर्ज़ पर ।

 

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