एक दिन वो भोले भंडारी (Ek Din Vo Bhole Bhandari)

Ek Din Vo Bhole Bhandari

एक दिन वो भोले भंडारी

 

तर्ज – मिलों न तुम तो हम घबराये

 

एक दिन वो भोले भंडारी , बनकर के बृजनारी
गोकुल में आ गये है
पार्वती भी मना के हारी , ना माने त्रिपुरारी
गोकुल में आ गये है ॥

 

पार्वती से बोले स्वामी ,
मै भी चलूंगा तेरे साथ में ।
राधा संग श्याम नाचे ,
भी नाचूंगा तेरे साथ में ।
रास रचेंगा बृज में भारी ,
हमें दिखावो प्यारी , गोकुल में ॥१॥

 

ओ मेरे भोले स्वामी ,
कैसे ले जाऊँ तुम्हें साथ में ।
मोहन के सिवा कोई ,
पुरुष न आये इस रास में ।
हँसी करेगी बृज की बाला ,
मानो बात हमारी , गोकुल में ॥२॥

 

ऐसा बना दो मुझको ,
जाने न कोई इस राज को ।
मै हूँ सहेली तेरी ,
ऐसा बताना बृजराज को ।
लगा के बिंदीया , पहन के साड़ी ,
चाल चलें मतवारी , गोकुल में ॥३॥

 

हँस के सती ने कहाँ ,
बलिहारी जाऊँ इस रुप में ।
एक दिन तुम्हारे लिये ,
आये थे मुरारी इस रुप में ।
मोहिनी रुप धरा था मोहन ,
अब है तुम्हारी बारी , गोकुल में ॥४॥

 

देखा मोहन ने वो ,
समझ गये ये सारी बात को ।
ऐसी बजायी बन्सी ,
सुध-बुध खोयी भोलेनाथ ने ।
खुल गया चुडा , खिस गयी साड़ी ,
तब मुस्काये मुरारी , गोकुल में ॥५॥

 

दिनदयालु तेरा ,
तब से गोपेश्वर हुवा नाम रे ।
ओ भोलेबाबा तेरा ,
वृंदावन बना एक धाम रे ।
ताराचंद कहे ओ त्रिपुरारी ,
रखना लाज हमारी , गोकुल में ॥६॥

 

 

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