He Hanuman Daya Nidhan Kar Thoda Ehsan Re Atki Naiya Par Laga De Balk Apna Jan Re
हे हनुमान दयानिधान कर थोड़ा एहसान रे अटकी नैया पार लगादे बालक अपना जान रे
तर्ज – दीनानाथ मेरी बात
हे हनुमान दयानिधान, कर थोड़ा एहसान रे,
अटकी नैया पार लगादे, बालक अपना जान रे ।।
रोम-रोम में राम बसे हैं, रामकृपा तुम्हें हासिल है
राम के काज संवारे तूने, काम मेरा क्या मुश्किल है
भरत समान बताया भाई, ऊँची तेरी शान रे ।।
अटकी नैया पार लगादे, बालक…..
कुछ तो डर तूफान का, फिर नाव भी पुरानी है
लहरों के थपेड़े खा ये, बेशक़ डूब जानी है
ले पतवार हाथों में, अब कहना मेरा मान रे ।।
अटकी नैया पार लगादे, बालक…..
मेहनत सब बेकार हुई, हम जीती बाजी हार गये
किस्मत के हैं खेल निराले, बेबस और लाचार हुये
डूब रहे हैं बीच भँवर में, संकट तूं पहचान रे ।।
अटकी नैया पार लगादे, बालक…..
मेरे बस की बात नही, अब आना हो तो आ जाओ
काम हमारा नाम तुम्हारा, नैया पार लगा जाओ
देख तेरी नाराजी ‘अनिल’ अब, हूँ मैं तो हैरान रे ।।
अटकी नैया पार लगादे, बालक…..
सुप्रसिद्ध भजन ‘ दीनानाथ मेरी बात, छानी कोनी तेरै सैं’ की तर्ज़ पर अनिल जी अग्रवाल कलम द्वारा रचित प्राचीन हनुमत वन्दना ।