मुझे तेरा अगर कान्हा सहारा ना मिला होता भटकती नाव तूफां में किनारा ना मिला होता (Mujhe Tera Agar Kanha Sahara Naa Mila Hota Bhatakti Naav Tufan Me Kinara Naa Mila Hota)

Mujhe Tera Agar Kanha Sahara Naa Mila Hota Bhatakti Naav Tufan Me Kinara Naa Mila Hota
मुझे तेरा अगर कान्हा सहारा ना मिला होता भटकती नाव तूफां में किनारा ना मिला होता

 

तर्ज – मुझे तेरी मुहब्बत का

 

मुझे तेरा अगर कान्हा, सहारा ना मिला होता,
भटकती नाव तूफां में, किनारा ना मिला होता ।।

 

पुकारा लाख अपनों को, किसी ने मुड़ के ना देखा,
बदल दी साँवरै तूने, मेरी बिगड़ी हुई रेखा,
तेरी रहमत जो ना होती, गुजारा ना चला होता ।।
भटकती नाव तूफां में, किनारा ना मिला….

 

बरसती आँख को पौंछा, मुझे हँसना सिखाया है,
मेरी मुरझाई बगिया को, करीने से सजाया है,
बिना तेरे चमन मेरा, दुबारा ना खिला होता ।।
भटकती नाव तूफां में, किनारा ना मिला….

 

अरज मंजूर इतनी सी, तेरे इस दास की करले,
जुबां से ‘हर्ष’ की कान्हा, तुम्हारा नाम ही निकले,
तेरे बिन दाग किस्मत का, हमारा ना धुला होता ।।
भटकती नाव तूफां में, किनारा ना मिला….

 

श्री विनोद अग्रवाल ‘हर्ष’ द्वारा ‘मुझे तेरी मुहब्बत का, सहारा मिल गया होता’ गीत की तर्ज़ पर रचित भावभरी रचना ।

 

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