थारी नगरी मं साँवरिया भगतां फाग मचायो रे (Thaari Nagri Me Sanwariya Bhagta Fhag Machayo Re)

Thaari Nagri Me Sanwariya Bhagta Fhag Machayo Re
थारी नगरी मं साँवरिया भगतां फाग मचायो रे

 

तर्ज – धमाल

 

थारी नगरी मं साँवरिया भगतां, फाग मचायो रे ।।

 

अबीर-गुलाल की भर-2 झोळी रोळी भाल लगाई,
इस्यो फाग तो मैं भी खेलूँ, जी ललचायो रे ।।
थारी नगरी मं साँवरिया भगतां….

 

अनमोलो चोलो केसरिया, फैंटो बँध्यो कसूंबो जी,
आज बतादे तन्नै कन्हैया, कुण सजायो रे ।।
थारी नगरी मं साँवरिया भगतां….

 

सीधो-सीधो सभामण्ड सैं, बेगो बाहर आज्या रे,
भीतर बड़कै बैठ्यो म्हानै, दाय ना आयो रे ।।
थारी नगरी मं साँवरिया भगतां….

 

थारै आयां ही अलबेला, रंग सुरंगो जमसी जी,
श्यामबहादुर ‘शिव’ मस्ती को, प्यालो प्यायो रे ।।
थारी नगरी मं साँवरिया भगतां….

 

श्रद्धेय स्व. शिवचरण जी भीमराजका  ‘शिव’ द्वारा रचित ‘धमाल’ ।

 

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