बाबा मतना लोग हंसावै रे हाथ जोड़कर करूँ विनती क्यूँ नहीं आवै रे (Baba Mat Na Log Hansawe Re Hath Jod Kar Karu Vinti Kyu Nhi Aave Re)

Baba Mat Na Log Hansawe Re Hath Jod Kar Karu Vinti Kyu Nhi Aave Re
बाबा मतना लोग हंसावै रे हाथ जोड़कर करूँ विनती क्यूँ नहीं आवै रे

 

तर्ज – ढोला ढोल मजीरा बाजै रे

 

बाबा मतना लोग हंसावै रे,
हाथ जोड़कर करूँ विनती, क्यूँ नहीं आवै रे ।।

 

मतना आँख्यां मीच साँवरा, देख टाबरां कानी,
अंतर को दुखड़ो तूं जाणै, तेरै सैं के छानी,
फिर क्यूँ टाबर नै तड़फावै रे ।
हाथ जोड़कर करूँ विनती, क्यूँ नहीं आवै रे ।।

 

कहणै मं कोई सार नहीं, तूं जाणै सबकै मन की,
तेरै नाम की देवै दुहाई, बात करै मतलब की,
बोलै ज़रा शरम नहीं आवै रे ।
हाथ जोड़कर करूँ विनती, क्यूँ नहीं आवै रे ।।

 

कुण-कुण कितणै पाणी मांही, तूं जाणै सांवरिया,
झूठी-सांची कहता डोलै, पल मं डुबोवै नैया,
मन मं ख़ौफ़ ज़रा नहीं खावै रे ।
हाथ जोड़कर करूँ विनती, क्यूँ नहीं आवै रे ।।

 

आणो हो तो आव साँवरा, मतना देर लगावै,
‘श्रीकृष्ण’ चरणां मं बैठ्यो, थानै आज बुलावै,
लज्जा राख नहीं तो जावै रे ।
हाथ जोड़कर करूँ विनती, क्यूँ नहीं आवै रे ।।

 

स्व. किशनलालजी माटोलिया ‘श्रीकृष्ण’ द्वारा राजस्थानी तर्ज़ ‘ढोला ढोल मजीरा बाजै रे’ पर रचित सुप्रसिद्ध प्राचीन रचना ।

 

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