चलकर काळी कोसां आयो महर कर दे ओ बाबा हो घोड़ै असवार सिर पर हाथ धरदे (Chalkar Kali Kosa Aayo Mahar Kar De O Baba Ho Ghode Aswar Sir Par Hath Dhar De)

Chalkar Kali Kosa Aayo Mahar Kar De O Baba Ho Ghode Aswar Sir Par Hath Dhar De
चलकर काळी कोसां आयो महर कर दे ओ बाबा हो घोड़ै असवार सिर पर हाथ धरदे

 

तर्ज – पल्लो लटकै गौरी को पल्लो लटकै

 

चलकर काळी-कोसां आयो, महर कर दे,
ओ बाबा हो घोड़ै असवार, सिर पर हाथ धरदे ।।

 

जो भी आवै शरणे थारै, खाली हाथ ना जावै,
साँचो है दरबार प्रभु थारो, मतना देर लगावै,
संकट काटो बाबा श्याम, नैया पार कर दे ।।
ओ बाबा हो घोड़ै असवार…….

 

दुखियारो हूँ टाबर थारो, खाटू श्याम बिहारी,
श्री चरणां मं आय पड्यो हूँ, सुध लेवो गिरधारी,
मेरी खाली झोळी साँवरा, मुरारी भर दे ।।
ओ बाबा हो घोड़ै असवार…….

 

अन्तर्यामी घट-घटवासी, मतना देर लगावै,
आज फैसलो करदे मेरो, लखदातार कहावै,
मेरी हुंडी को साँवरिया, तूं भुगतान कर दे ।।
ओ बाबा हो घोड़ै असवार…….

 

‘श्रीकृष्ण’ चरणां मं बैठ्यो, अरज़ करै साँवरिया,
पगां उभाणो चलकर आयो, खाटू श्याम नगरिया,
मेरी अभिलाषा नै साँवरा, इब पूरी कर दे ।।
ओ बाबा हो घोड़ै असवार…….

 

स्व. किशनलाल जी माटोलिया ‘श्रीकृष्ण’ द्वारा राजस्थानी गीत ‘पल्लो लटकै गौरी को पल्लो लटकै’ की तर्ज़ पर रचित अति प्राचीन रचना ।

 

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