ज्यूँ ज्यूँ कातिक बित्यो जावै ज्यूँ ज्यूँ फागण नीड़ै आवै (Jyu Jyu Kartik Bito Jave Jyu Jyu Fagan Nedo Aave)

Jyu Jyu Kartik Bito Jave Jyu Jyu Fagan Nedo Aave
ज्यूँ ज्यूँ कातिक बित्यो जावै ज्यूँ ज्यूँ फागण नीड़ै आवै भगतों मन म्हारो हरसावै जास्यां बाबा कै

 

तर्ज – धरती धोरां री

 

ज्यूँ-ज्यूँ कातिक बित्यो जावै,
ज्यूँ-ज्यूँ फागण नीड़ै आवै,
भगतों मन म्हारो हरसावै,
जास्यां बाबा कै, ओ जास्यां बाबा कै ।।

 

बाबो खाटू मांही बिराजै,
ई कै शंख-नगाड़ा बाजै,
भगतां मगन होय कर नाचै ।
जास्यां बाबा कै, ओ जास्यां बाबा कै ।।

 

भगतां दूर-दूर सैं आवै,
आकर श्याम का दरशन पावै,
रंग-बिरंगी ध्वजा चढ़ावै ।
जास्यां बाबा कै, ओ जास्यां बाबा कै ।।

 

आयो फागण रंग-रंगीलो,
भगतों म्हानै भी संग ले ल्यो,
देखां श्यामधणी को मेळो ।
जास्यां बाबा कै, ओ जास्यां बाबा कै ।।

 

आवै जद-जद फागण प्यारो,
गूंजै बाबा को जयकारो,
आवै ‘बनवारी’ जग सारो ।
जास्यां बाबा कै, ओ जास्यां बाबा कै ।।

 

श्री जयशंकर चौधरी ‘बनवारी’ द्वारा राजस्थानी गीत ‘धरती धोरां री’ की तर्ज़ पर रचित सर्वप्रिय रचना ।

 

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