पलकें उठाके साँवरे इक बार देखलो आँखों से मेरे बह रही वो धार देखलो (Palke uthake Sanware Ek Baar Dekhlo Aankho Se Bah Rahi Vo Dhaar Dekhlo)

Palke uthake Sanware Ek Baar Dekhlo Aankho Se Bah Rahi Vo Dhaar Dekhlo
पलकें उठाके साँवरे इक बार देखलो आँखों से मेरे बह रही वो धार देखलो

 

तर्ज – मिलती है जिन्दगी में

 

पलकें उठाके साँवरे, इक बार देखलो,
आँखों से मेरे बह रही, वो धार देखलो ।।

 

दाता तेरे जहान की, रफ्तार है बड़ी,
किस्मत हमारी क्यूँ भला, रूठी हुई पड़ी,
पिछड़ा हूँ मैं जमाने से, दातार देखलो ।।
आँखों से मेरे बह रही, वो धार….

 

बदला है तूने जीत में, कितनों की हार को,
कश्ती हमारी फिर बता, कैसे ना पार हो,
थामा है तूने हाथ को, हर बार देखलो ।।
आँखों से मेरे बह रही, वो धार….

 

हारा हुआ गरीब हूँ, हारे के साथी सुन,
बदलेंगे तेरे द्वार पे, तेरे ‘हर्ष’ के भी दिन,
सन्मुख खड़ा हूँ आपके, सरकार देखलो ।।
आँखों से मेरे बह रही, वो धार….

 

श्री विनोद अग्रवाल ‘हर्ष’ द्वारा ‘मिलती है जिन्दगी में, मुहब्बत कभी-कभी’ गीत की तर्ज़ पर रचित रचना ।

 

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