श्री सालासर बालाजी मंदिर सालासर सुजानगढ़ राजस्थान (Shree Salasar Balaji Mandir Salasar Sujangarh Rajasthan)

Shree Salasar Balaji Mandir Salasar Sujangarh Rajasthan

श्री सालासर बालाजी मंदिर सालासर सुजानगढ़ राजस्थान

थारे झाँझ नगारा बाजे रे , सालासर के मंदिर में हनुमान विराजे रे , बठे बजरंग विराजे रे

भारत राजस्थान मे जी सालासर एक गाँव , सूरज शामीं बनो देवरो महिमा अपरम्पार

थारे लाल ध्वजा फहरावे रे , सालासर के मंदिर में हनुमान विराजे रे

…… भक्ति से खुश होकर भक्त ने दिया भक्त को वरदान …………

 

भारत वर्ष के देवस्थानों में सिद्ध पीठ श्री सालासर धाम मंदिर की प्रतिष्ठा एवं इतिहास , चमत्कारों में से एक चमत्कार है। लाखों लाख भक्तों की आस्था का केन्द्र सालासर धाम , जहाँ साक्षात श्री हनुमान जी महाराज विराजते हैं एवं अपने निज भक्तों के कष्टों का निवारण करतें हैं| जहाँ लाखों भक्त , भारत के कोने – कोने से आकर राम भक्त , भक्त शिरोमणि , वीर शिरोमणि , ज्ञानीना अग्रणी एवं भक्त प्रतिपाल श्री हनुमान जी महाराज के शीश झुकाते हैं।

सिद्ध पीठ श्री सालासर धाम मंदिर , राजस्थान के राष्ट्रीय राजमार्ग 65 पर चुरू जिले में सुजानगढ़ के समीप सालासर नामक स्थान पर स्थित है। सालासर धाम से सुविख्यात है। सालासर धाम सालासर कस्बें के मध्य में स्थित है। सालासर कस्बा सुजानगढ़ पंचायत समिति के अधिकार क्षेत्र में आता है| यह सीकर से 57 किलोमीटर, सुजानगढ़ से 24 किलोमीटर और लक्ष्मणगढ़ से 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

श्री सालासर बालाजी धाम पहले “तेतरवालों की ढाणी” के नाम से जाना जाता था और जब ठाकुर ‘सालेम सिंह’ सालासर आकर रहे तो इस गाँव का नाम सालासर कर दिया गया। बालाजी के प्रसिद्ध मंदिर के कारण अब इसी गाँव को “सालासर” के नाम से पहचाना जाता है। मोहनदास जी के द्वारा बालाजी की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा हो जाने के उपरान्त इस गाँव को सालासर के स्थान पर “सालासर धाम”, “सालासर बालाजी” के नाम से पहचाना जाने लगा है।

संत श्री मोहनदास जी महाराज की भक्ति से खुश होकर स्वयं रामदूत हनुमान जी महाराज , मूर्ती के रूप में विक्रमी संवत् 1811 श्रावण शुक्ला नवमी , शनिवार को आसोटा में प्रकट होकर सालासर में भक्त की मनोकामना पूर्ण की।

श्री सालासर बालाजी मूर्ति – श्री हनुमान जी को ही श्रद्धा पूर्वक भक्त जन बालाजी के नाम से पुकारते हैं। हनुमान जी का एक मात्र ऐसा मंदिर है यहां जिस रूप में बालाजी की मूर्ति है वैसी देश में अन्यत्र कहीं भी नहीं हैं। यहां पर हनुमान जी के दाढ़ी मूंछे दिखाई देती है। दाढ़ी मूंछों की अन्य कोई प्रतिमा श्री हनुमान जी के रूप में दिखाई नहीं देती है। बाकि चेहरे पर राम भक्ति में राम आयु बढ़ाने का सिंदूर चढ़ा हुआ है। इसके पीछे मान्यता यह है कि मोहनदास को पहली बार बालाजी ने दाढ़ी मूंछों के साथ दर्शन दिए थे। श्री बालाजी महाराज की मूर्ति “शालिग्राम” पत्थर से बनी हुई है। इस मूर्ति को स्वर्ण से सजाया गया है और मूर्ति के ऊपर सोने का छत्र लगाया गया है।

कई स्थानों पर वर्णन प्राप्त होता है की श्री सालासर बालाजी की मूर्ति पहले ऐसी नहीं थी | बालाजी की जो मूर्ति कृषक परिवार को मिली थी उस मूर्ति में श्री हनुमान जी राम और लक्ष्मण जी को कन्धों पर उठाये हुए हैं। श्रावण द्वादशी मंगलवार को भक्त शिरोमणि मोहनदास जी ने जब हनुमान जी उस मूर्ति का श्रृंगार शुरू किया तो एक चमत्कार हुआ जिसमें राम लक्ष्मण को कन्धों पर उठाये श्री हनुमान जी की मूर्ति के स्थान पर वर्तमान दाढ़ी मूंछों वाली हनुमान जी की मूर्ति स्वतः ही प्रकट हो गई। इस मूर्ति में श्री हनुमान जी के दाढ़ी मूंछे थे और पास में गदा, विशाल नयन अपर पर्वत दिखाई देता है।

पूरा मंदिर सफेद संगमरमर से बना हुआ है। मंदिर की स्थापत्य शैली/ निर्माण पूर्णतया हिन्दू शैली में ही है। मंदिर का निर्माण 1754 में शुरू हुआ था, जिसे पूरा होने में दो साल लगे थे। सालासर बालाजी के इस मंदिर के निर्माण में फतेहपुर (राजस्थान) के मुस्लिम कारीगर  नूर मोहम्मद और दाऊ नाम के कारीगरों ने इस मंदिर के निर्माण कार्य में अपना योगदान दिया था।

सालासर बालाजी धाम का निर्माण इतिहास : श्री सालासर बालाजी के सालासर धाम में स्थापित होने की प्राचीन कथा है जो ईस्वी सं १७५४ (संवत १८११ / 1811) श्रावण शुक्लपक्ष नवमी – शनिवार को एक चमत्कार हुआ। नागौर (राजस्थान) के असोटा गाँव में गिंठाला (गिन्थाला) (जाट गौत्र) जाट किसान अपने खेतों में जुताई का काम कर रहा था। जब किसान का हल किसी ठोस वस्तु से टकराया  और एक गूँजती हुई आवाज पैदा हुई तब उस किसान ने निचे खोद कर देता तो वहाँ पर उसे एक हनुमान जी की मूर्ति दिखाई दी और जब किसान ने अपनी पत्नी को वह मूर्ति दिखाई तो किसान की पत्नी ने अपनी साड़ी (पोशाक) से मूर्त्ति को साफ़ की। उन्होंने समर्पण के साथ अपने सिर झुकाये और भगवान बालाजी की पूजा की। भाव विभोर होकर खेजड़ी के पेड़ के नीचे मूर्ती को रखकर रोटी के चूरमें का भोग लगाया। खेत में हनुमान जी की मूर्ति मिलने (भगवान बालाजी के प्रकट होने ) का समाचार तुरन्त असोटा गाँव में फ़ैल गया।

वहीँ आसोटा गाँव के ठाकुर को बालाजी ने उसके सपने में आकर  निर्देश मिले की खेत में मिली हनुमान जी की मूर्ति को वे सालासर गाँव में भेज दे जहाँ पर उनका परम भक्त “मोहनदास” जी रहते थे। इसी रोज श्री मोहनदास जी महाराज भी अपने सपने में बालाजी को देखते हैं। जब मोहनदास जी ने अपने सपने में बालाजी के आने और मूर्ति के विषय पर असोटा गांव के ठाकुर को सन्देश भेजा तो वे चकित रह गए की आसोटा आये बिना ही मोहन दासजी को मूर्ति के विषय में कैसे पता चला। निश्चित रूप से, यह सब सर्वशक्तिमान भगवान बालाजी की कृपा से ही हो रहा था। हनुमान जी को असोता गांव से रथ में विराजित कर ग्रामीण जन कीर्तन करते हुए लेकर आये।

मोहन दास जी को बालाजी ने सपने में बताया कि जिस बैलगाड़ी से मूर्ति सालासर पहुंचेगी उसे सालासर पहुंचने पर कोई नहीं चलाए। जहां बैलगाड़ी खुद रुक जाए वहीं मेरी मूर्ति स्थापित कर देना। सपने में मिले निर्देश के अनुसार महात्माओं ने बैलों के रूकने का इन्तजार किया और कहा कि बैल जहाँ रूकेंगे वहीं पर मूर्ती की स्थापना की जाएगी। कुछ देर चलने के बाद बैल एक टीले पर मोहनदास के धुणे के पास जाकर रूक गए और उसी जगह पर संवत् 1811 , श्रावण शुक्ला नवमी , शनिवार के दिन मूर्ती की स्थापना की गई। ही मूर्ति को वर्तमान स्थान पर स्थापित किया गया है। यहीं स्थान वर्तमान में सालासर धाम के नाम से जाना जाता है। संवत् 1815 में संत श्री मनोहर दास जी ने मंदिर की सेवा सौंपकर स्वंय जीवित समाधिस्थ हो गए। मान्यता है की आज भी मंदिर में उस बैलगाड़ी को सुरक्षित रखा गया है।

मूर्ती स्थापना के समय पर संत श्री मोहनदास जी महाराज ने श्रीबालाजी महाराज का दीप प्रज्जवलित किया जो कि तब से आज तक अखंड ज्योति के रूप में सालासर धाम में प्रज्जवलित है। मंदिर का गर्भ गृह जहाँ पर मूर्ती को स्थापित है, पर किसी भी प्रकार की कोई रौशनी के लिए लाईट नहीं है तथा बाहरी लाईटों से ही गर्भ गृह में रौशनी रहती है। श्री मोहनदासजी महाराज की तपस्या स्थली का धुणा भी उसी समय से आज तक अखंड चल रहा है।

एक अन्य किंवदंती के अनुसार आसोटा गांव में कृषक परिवार को मिट्टी में सनी हुई दो मूर्त्तियाँ मिलीं| पहली मूर्ति को सालासर व् दूसरी मूर्त्ति को इस स्थान से 25 किलोमीटर दूर पाबोलाम (जसवंतगढ़) में स्थापित कर दिया गया। पाबोलाव में सुबह के समय समारोह का आयोजन किया गया और उसी दिन शाम को सालासर में समारोह का आयोजन किया गया।

संत शिरोमणि श्री मनोहर दास जी व श्री हनुमान जी महाराज का मिलन

संत श्री मनोहरदास जी महाराज अपनी बहन कान्ही बाई के पास रहते थे तथा सदैव बालाजी महाराज की भक्ति में लग्न लगाए रखते थे। एक दिन श्री मोहनदास जी भोजन कर रहे थे और इसी दौरान उन्हे किसी साधु की भिक्षा के लिए आवाज सुनाई दी। श्री मोहनदास जी ने अपनी बहन कान्ही बाई को दरवाजे पर भेजा परन्तु उन्हे कोई नहीं दिखाई दिया और फिर स्वयं श्री मोहन दास जी ने भी खुद आकर देखा परन्तु उन्हें भी कोई नहीं दिखाई दिया परन्तु श्री मोहनदास जी को न जाने क्यों ये एहसास हुआ कि हनुमान जी खुद आए थे। ठीक दो माह बाद उसी समय पुनः वही अलख की आवाज आई और मोहनदास जी व उनकी बहन ने आवाज को पहचान लिया और मोहनदास जी से कहा – ‘ तु जो कह रहा था वही हनुमान साधु फिर आया है, यह आवाज उसी की है’ । मोहनदास जी दौड़ कर गए और देखा कि श्री हनुमान जी महाराज , साधु के वेष में थे और उनके मुख पर दाढ़ी थी और हाथ में छड़ी के साथ अपने भक्त को दर्शन देने स्वयं उनके घर आये और मोहनदास जी को देखकर तेज गति से वापस जाने लगे और मोहनदास जी को पिछे आता देखकर छड़ी उठाकर मोहनदासजी को धमकाते हुए कहा – मेरा पिछा छोड़ दे , बता तुझे क्या चाहिए जो माँगता है माँग , प्रसन्नता से दूँगा ’। प्रभु की लीला थी और श्री मोहनदास जी महाराज भी जान गए और चरणों से लिपटकर बोले कि ‘ मैं जो चाहता था वो मिल गया और इसके सिवा अब मुझे और क्या चाहिए , बस आप घर तो चलो’। इस पर श्री हनुमान जी ने कहा यदि तुम खांड युक्त खीर का भोजन तथा अछुती शैया पर विश्राम करवा सको तो चलूं। मोहनदास जी ने स्वीकार किया और श्री हनुमान जी महाराज , मोहनदास जी के साथ उनके घर आए और फिर इस तरह कई बार दर्शन दिया व घर आए। मोहनदास जी की भक्ति से प्रसन्न होकर दूर न होने का आशीर्वाद दिया और प्रार्थना स्वीकार करते हुए , स्वंय मूर्ती के रूप में सालासर में विराजित होने का वचन दिया।

सालासर में अंजनी माता का प्राकट्य

अंजनी माता भगवान हनुमान या बालाजी की माँ । अंजनी माता का मंदिर क्यों बना इसके पीछे एक कथा यह कही जाती है कि सालासर मंदिर को बने एक अरसा बीत जाने के बाद एक रात अंजनी नन्दन ब्रह्मचारी हनुमान जी ने अपनी जन्मदात्री माता अंजनी का मानसिक आवाहन् किया और एक युग प्रेम से विभोर माता अपने पुत्र से हृदय से लिपट कर मिली। श्री हनुमान जी ने अपनी माता को बताया कि आपके शुभाषीर्वाद के प्रताप से ही मैं यहाँ सालासर में रहकर अपने भक्तों की मनोकामना पूर्ण कर रहा हूँ। माता अंजनी ने हनुमान जी से खुश होकर कहा कि बता पुत्र मैं तुम्हारा क्या कल्याण करूं। श्री हनुमान जी ने माता से कहा कि आपके व माता जानकी के आशीर्वाद के प्रताप से भक्तों को देने के लिए कुछ भी अदेय नहीं है किन्तु मैं बालब्रहम्मचारी होने के कारण स्त्री व बाल विषयक समस्याओं व व्याधियों के समाधान में मुझे कुछ उलझन होती है अतः माता इसके निवारणार्थ क्या आप मेरे पास रहकर भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करनें में सहयोग करेंगी तो मैं अपने आप को सौभाग्यशाली समझूंगा। माँ ने कहा – अवश्य वत्स मैं तुम्हारी मनोकामना पूर्ण करूंगी और तुम्हारे धाम के नजदीक ही अलग स्थान पर भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करूंगी।

श्री हनुमान जी ने माता से कहा – भक्त पन्नाराम पारीक (पंडित पन्नालाल) जिनके प्रपिता बालमुकुन्द जी एवं पिता जानकी लाल ने वर्षों तक मेरी व मेरे भक्त मोहनदास की समाधी की सुबह शाम सेवा अर्चना की है अतः मैं इस परिवार को कुछ देना चाहता हूँ। जिस प्रकार मेरी आराधना से मोहनदास के भाणजे उदयराम की संतती , भक्तराज की तपस्या का नवनीत पान कर रही है। उसी प्रकार मेरे भक्त राज मोहनदास की सेवा पूजा करने का नवनीत पान उनको भी मिले। माता अंजनी को हनुमान जी की बात ठीक लगी और हनुमान जी से कहा कि – कुछ ऐसी व्यवस्था करो जिससे पन्नालाल में विरक्ति के भाव उत्पन्न हो जिससे मेरे प्रति अनुराग उत्पन्न हो तथा 12 वर्ष तक मेरी तपस्या करे तभी मैं प्रसन्न होउंगी।

विधी के विधान को टाला नहीं जा सकता और पन्नालाल जी की पत्नी का एकाएक स्वर्गवास हो गया। पंडित जी के मन में हनुमान जी की कृपा से विरक्ति के भाव जगे और धर परिवार सम्पत्ति छोड़ छाड़, बच्चों का मोह त्याग कर साधुवृती में आ गए ओर प्रयाग चले गए। कुछ वर्ष बाद अंजनी नंदन के संकेतो से पुनः सालासर लौटने को विवष हो गए और जुलियासर तलाई में कुटिया बनाकर रहने लगे। यात्रीयों को पानी पिलाना , गीता भागवत रामायण आदि का पाठ करने लगे और माता अंजनी की आराधना करने लगे। कुछ वर्षों तक एक समय भोजन व कुछ वर्षों तक किंचित मात्र दूध पर रहकर माँ अंजनी की आराधना की। 24 वर्ष पूरे होने पर मातेश्वरी अंजनी प्रकट हुई और पन्नालाल जी की वर्षों की तपस्या फलीभूत हुई। माता ने सीकर नरेश कल्याणसिंह जी को प्रेरित किया और राजधराने से मूर्ती मंगवाई गई। ज्येष्ठ सुदी 5 , सोमवार , संवत् 2020 को शुभ महुर्त पर मूर्ती मंदिर में स्थापित की गई। माँ के चतुर्भुज रूप व गोदी में अपने नंदन हनुमान जी को लिए हुए के दर्शन पाकर सभी भक्त जन प्रफुल्लित हुए। मात्र 10 वर्ष अपने सानिध्य में माता अंजनी के मंदिर की कार्यप्रणाली व्यवस्थित कर 75 वर्ष की आयु में पोष कृष्ण एकादशी , संवत् 2030 को पन्नालाल जी महाराज माई की सेवा पूजा का भार अपनी संतती पर छोड़कर परम धाम को प्रस्थान कर गये।

अष्ठ सिद्धी व नव निधी की दात्री माता अंजनी को स्त्रीयों व बालकों के कष्ट निवारण में विशेष रूची है। माँ की कृपा से किसी स्त्री के गर्भधारण से प्रसव तक जच्चा व बच्चा दोनों की सभी प्रकार से रक्षा करने में पूर्ण सहाई हैं। माँ अंजनी की ताँती बाँध देने मात्र से रोगी पूर्ण स्वस्थ हो जाता है बस माँ पर पूर्ण श्रद्धा व अटूट विश्वास आवश्यक है। माँ अन्नपूर्णा के स्मरण मात्र से कभी भण्डार खाली नहीं होते। मंगल शनि व उज्जवला चतुर्दशी का माई से की गई प्रार्थना पूर्ण रूपेण फलित होती है।

दर्शनीय स्थल

श्री मोहन दास जी का धूणा व समाधी:

मोहनदास जी की का धूणा वह जगह है, जहाँ भगवान हनुमान के भक्त मोहनदास जी के द्वारा पवित्र अग्नि जलायी गयी, जो आज भी जल रही है। हिंदू श्रद्धालु और तीर्थयात्री यहाँ से पवित्र राख ले जाते हैं। मान्यता है कि इस अग्नि कुण्ड की विभूति से समस्त दुख व कष्ट नष्ट हो जाते हैं। श्री मोहन मंदिर, बालाजी मंदिर के बहुत ही पास स्थित है, यह इसलिए प्रसिद्ध है क्योंकि मोहनदास जी और कनिदादी के पैरों के निशान यहाँ आज भी मौजूद हैं। इस स्थान के पास ही इन दोनों पवित्र भक्तों का समाधि स्थल है। पिछले आठ सालों से यहाँ निरंतर रामायण का पाठ किया जा रहा है। भगवान बालाजी के मंदिर परिसर में, पिछले 20 सालों से लगातार अखण्ड हरी कीर्तन या राम के नाम का निरंतर जाप किया जा रहा है।

श्री सालासर बालाजी का भोग

श्री सालासर बालाजी को मोहनदास जी बाजरे और मोठ की खिंचड़ी का भोग लगाया करते थे तभी से बालाजी को बाजरे और मोठ से बनी खिंचड़ी का भी भोग लगाया जाता है। भक्त जन यहाँ सवामणी भी करवाते हैं जिनमे श्रद्धालुओं को चूरमा प्रसाद के रूप में बाँटा जाता है। खिंचड़ी के अतिरिक्त चूरमे (चूरमे का लड्डू) और पेड़े का भी भोग लगाया जाता है। वर्तमान में भी पारम्परिक रूप से रोटा और खींचड़े का भोग लगाया जाता है।

श्री सालासर बालाजी की प्रतिमा को लाने वाली बैल गाड़ी

असोटा गाँव से बालाजी की मूर्ति को सालासर में मोहनदास जी के पास भेजा गया था और जिस बैलगाड़ी में उसे लाया गया था वह आज भी मंदिर परिसर के पास बने कमरे में सुरक्षित रखी गई है।

कभी समाप्त नहीं होने वाले अन्न के कोठड़े

मोहनदास ने अपने शिष्यों को बताया था की दो कोठड़े ऐसे हैं जिमें अनाज कभी समाप्त नहीं होता है और वे सदा अन्न से भरे रहते हैं। अपने शिष्यों को उन कोठडो को खोलने से मोहनदास जी ने मना किया था लेकिन भूल वश जब उन कोठड़ों को खोल लिया गया तो वह दिव्य अनाज के भंडार का चमत्कार स्वतः ही समाप्त हो गया। आज भी ये कोठड़े वहां पर स्थापित हैं।

बालाजी के मंदिर में नारियल को बांधना

श्री सालासर बालाजी के मंदिर के बाहर खेजड़ी पर नारियल बाँधने की पुरानी धार्मिक मान्यता है। अपनी मुरादों को याद करके नारियल को मोली से बाँधने पर सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।वर्तमान में बालाजी के मंदिर के पास वर्षों पुराना जाल का वृक्ष भी है जिस पर भी नारियल बांधे जाते हैं। माना जाता है की यह जाल का वृक्ष मंदिर निर्माण से पूर्व का है।

सालासर बालाजी का मंदिर और चांदी

सालासर बालाजी मंदिर के मुख्य गर्भ गृह की दीवारों पर चाँदी की प्लेटों पर बालाजी और श्री राम जी की मूर्तियों को उकेर कर लगाया गया है। सभी दीवारें चाँदी से सुसज्जित हैं। सालासर बालाजी मंदिर में इस्तेमाल किए जाने वाले बर्तन और दरवाजे चांदी के बने हैं।

गुदावादी श्याम मंदिर भी सालासर धाम से एक किलोमीटर के भीतर स्थित है।

शयनन माता मंदिर, जो यहाँ से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर रेगिस्तान में एक अद्वितीय पहाड़ी पर स्थित है, माना जाता है कि यह 1100 साल पुराना मंदिर है, यह भी दर्शन के योग्य है।

वैसे तो सालासर धाम में हर रोज ही भक्तों से बाबा के मेले सा माहौल रहता है पर श्रावण शुक्ल नवमी, श्री हनुमान जयंती, आश्विन शुक्ल चतुर्दशी और भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी को भक्त विशेष रूप से सालासर बालाजी के दर्शन करने आते हैं। मंगलवार और शनिवार को बालाजी के दर्शन करना, हनुमान चालीसा का पाठ करना शुभ माना जाता है। चैत्र मास – अप्रैल और आश्विन (आसोज) मास – अक्टूबर की पूर्णिमाओं पर यहां विशाल मेला लगता है जिसमें लाखों लाख भक्त पदयात्रा एवं निशान यात्रा कर श्री हनुमान जी महाराज के पावन दरबार में पहुँचते है। जो काफी दिनों तक चलता है और काफी प्रसिद्ध है।

श्री हनुमान जयन्ती का उत्सव हर साल चैत्र शुक्ल चतुर्दशी और पूर्णिमा को मनाया जाता है।

सालासर बालाजी मंदिर में हनुमान जयंती, रामनवमी के अवसर पर भण्डारे और कीर्तन को विशेष आयोजन किया जाता है। प्रत्येक मंगलवार एवं शनिवार के दिन मंदिर में कीर्तन आदि आयोजन होते हैं और बडी संख्या में इन दिनों में श्रद्धालु दर्शन करते हैं।

सालासर बालाजी मंदिर का रखरखाव मोहनदास जी ट्रस्ट (हनुमान सेवा समिति) के द्वारा किया जाता है। मंदिर और मेलों के प्रबन्धन का काम करती है। यहाँ रहने के लिए कई धर्मशालाएँ और खाने-पीने के लिए कई जलपान-गृह (रेस्तराँ) हैं।

 

।। श्री श्याम आशीर्वाद ।।
।। श्याम श्याम तो मैं रटू , श्याम यही जीवन प्राण ।।
।। श्याम भक्त जग में बड़े उनको करू प्रणाम ।।
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