श्री शिवचरण जी भीमराजका (Shree Shiv Charan Bhimrajka)

Shree Shiv Charan Bhimrajka

श्री शिवचरण जी भीमराजका (शिव)

 

 ‘जननी जणै तो दोय जण, कै दाता के सूर, नितर तो बांझड भली, मति गंवावै नूर’।

 

राजपूताना के रेतीले धोरों में शुष्क भूमि के नीचे काव्य-संगीत की एक अक्षुण्ण-अनन्त मदांकिनी निरन्तर प्रवाहित होती रही है। इसी पावन धरा पर भक्ति मार्ग की शीर्ष आराधिका मीरा बाई ने पद गा-गाकर परमेश्वर को, गिरधर को अपना पति बना लिया तो यहीं श्री दादू जी जैसे भक्तों ने अपने दोहों से जनमानस को सत्य के मार्ग पर बढ़ने हेतु प्रेरित किया। यहां सूखी-बंजर भूमी से निराष प्रियतम के परदेष जाने पर विरह व्यथित मरवण ने मांड जैसी राग की रचना कर डाली। धनकुबेरों और सूरमाओं को जन्म देने के लिये विख्यात यह मरू प्रदेश पृथ्वीराज चौहान के राजकवि चन्द्र वरदाई हेतु जाना जाता है। इसी राजपूताना के शेखावाटी अंचल में एक कस्बा है चिड़ावा। झुन्झनु जिले के चिड़वा की भूमी को धनकुबेरों एवं शूरवीरों की प्रसूता होने का गौरव प्राप्त है। इसी चिड़ावा मे अग्रवाल-वैश्य परिवार में जन्म लिया भक्त-कवि श्री शिवचरण भीमराजका ने, जिनकी कलम से निकला साहित्य श्याम जगत की एक अद्भुत अक्षुण्ण धरोहर बन गई। सन् 1922 में भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी (अनन्त चतुर्दशी) के पावन दिन भीमराजका परिवार में श्रीमती मथरा बाई की कोख से जिस बालक ने जन्म लिया, उस पर माँ शारदा की ऐसी अनुकम्पा बरसी कि उन्होंने गजल, कव्वाली, गीत, भजन, नाटक की वो अनमोल धरोहर हिन्दुस्तान के साहित्य समाज को भेंट कर दी जिसकी पुनरावृति की कल्पना भी दुष्कर है।

पिता स्योनारायण (शिवनारायन) एवं मातुश्री मथरी बाई के चार पुत्रों में द्वितीय श्री शिवचरण का रूझान बाल्यकाल से ही संगीत-काव्य-साहित्य की और था। कस्बे के गुरूकुल मे आरम्भिक शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात तत्कालीन व्यवस्थाओं के अनुरूप शिवचरण जी भी किशोर अवस्था मे काम-काज की तलाश मे मुम्बई आ गये। बम्बई आकर शिवचरण जी ने मारवाड़ी फर्मों में नौकरी तो की ही, साथ ही नाटक लिखना भी आरम्भ किया। सामाजिक कुरूतियों, समसामयिक विषयों एवं धार्मिक प्रसंगों पर आधारित अनेक नाटकों का सृजन कर उनका मंचन किया। वस्तुतः अपनी किशोरावस्था में ही शिवचरण जी भीमराजका ने अपनी भावी जीवन यात्रा एवं लक्ष्य की ओेर संकेत कर दिया था।

सन् 1941 में लगभग 19 वर्ष की आयु में शिवचरण जी का विवाह झुन्झुनूं जिले के मण्ड्रेला कस्बे में श्री जुगल किशोर जी की सुपुत्री रामप्यारी देवी से सम्पन्न हुआ। बम्बई प्रवास के दौरान शिवचरण जी का कलकत्ता भी आना जाना लगा रहता। श्याम दीवानों की मुख्य संस्कारधानी का गौरव प्राप्त इस महानगर ने भक्त-कवि शिवचरण जी को हाथों हाथ अपना लिया और पलकों पर बैठाया। वर्ष 1957 से आप कलकता के ही निवासी हो गये। वणिक परिवार में जन्म लेने के बावजूद आपने सदैव सरस्वती साधना मे ही जुटे रहे व धनोपार्जन उतना ही किया जितना परिवार पालन हेतु आवश्यक था। शारदा का यह यशस्वी पुत्र अब पूर्ण रूपेण श्याम साधना में लीन हो चुका था। उनके समकालीन श्याम प्रेमी मित्रगण एवं उनके परिवारजन बताते हैं कि वो कुर्ते में सदैव एक डायरी रखते थे। मध्यरात्रि में जब उनका पूरा परिवार नींद के आगोश में चला जाता, शिवचरण जी अपनी शैय्या पर तकिये का सहारा लेकर बैठ जाते। अर्द्धरात्रि से ब्रह्म-बेला तक बाबा श्याम का यह साधक गोपी भाव में बैठा अपने प्रियतम की विरह-वेदना में निरन्तर अश्रुधारा प्रवाहित करते रहते। भावावेग के इन पलों में जो शब्द मन-मस्तिष्क में उमड़ते, उन्हें अपनी पॉकेट डायरी में लिख लेते। उनके परिवारजन बताते है कि सुबह जब वो उठते तो शिवचरण का कुर्ता अक्सर भीगा हुआ पाया जाता। जिस प्रकार कबीर-सूरदास, रैदास, रसखान, तुलसी, मीरां, बुल्लेशाह ने गा-गाकर अपने आराध्य को रिझाया-मनाया, उसी राह पर चल पड़ा था, भक्ति मार्ग का यह पथिक। तत्कालीन श्याम भक्त श्रद्धेय काशीराम जी के सम्पर्क में आने पर उनसे प्रभावित हो शिवचरण जी ने उनके नाम से अनेक भजनों की रचना की और भजनों में अपने गुरूतुल्य श्री काशीराम जी शर्मा के नाम की छाप लगाई।

दिल्ली निवासी श्रीमती शान्ति बाई जी, जिन्हें आज का श्याम समुदाय शान्ति बुआ जी का आदर सम्बोधन देता है, को उन्होंनें अपनी धर्म-भगिनी के रूप में स्वीकारा और आजीवन इस रिश्ते को निभाया। कहते हैं, शान्ति बुआजी से सम्पर्क में आने के पश्चात शिवचरण जी किसी भी रचना के पूर्ण होने पर पहले उसे शान्ति बुआजी को दिखाते और उनकी स्वीकृति के पश्चात ही खाटू नरेश के चरणों में अर्पित करते।

शिवचरण जी एवं उनकी अंर्द्धागिनी श्रीमती रामप्यारी भीमराजका एक पुत्र के माता-पिता बन चुके थे। पुत्र का नामकरण किया गया – कैलाश चन्द्र भीमराजका। कलकत्ता में रहते हुये शिवचरण जी भीमराजका ने आज से लगभग 51 वर्ष पूर्व एक श्याम सेवी संस्था ‘श्री श्याम सरोवर’ का भी गठन किया। तत्पश्चात सलकिया, हावड़ा में उनके सानिध्य में ही श्री श्याम सेवा संघ नामक संस्था का गठन हुआ। श्याम भक्त माल के शीर्ष रत्न श्रद्धेय श्याम बहादुर जी रेवाड़ी वालों से प्रभावित हो उन्होंने अपनी रचनायें ‘श्याम बहादुर’ छाप से रचनी प्रारम्भ की। साथीगणों एवं श्याम प्रेमियों के आग्रह पर अब भजनों में स्वयं का नाम ‘शिव’ भी समाहित करने लगे। यह ‘शिव’ और ‘श्याम बहादुर’ ही सम्पूर्ण श्याम जगत में अपनी अनूठी, अभूतपूर्व और अद्वितीय पहचान बनाने मे कामयाब रहा।

यह माँ शारदे और खाटू नरेश बाबा श्याम की अनुकम्पा द्वारा ही सम्भव हुआ कि उन्होंने अपने जीवनकाल में इतने भजनों की रचना कर दी की रेतीले धोरों के बीच बसे इस देवालय के आराधकों एवं गायकों को साहित्य का ऐसा अक्षुण्ण भण्डार मिल गया जिसकी तुलना नितान्त असम्भव है। साहित्य के सभी नौ रस यथा श्रृंगार रस, अवधूत रस, हास्य रस, वीर रस, रौद्र रस, भयानक रस, माधुर्य रस, वीभत्स रस और शान्त रस पर उनका समान अधिकार था और इन सभी विधाओं में इन्होनें रचनायें रची। वस्तुतः इनकी रचनाओं को गाते-गुनगुनाते समय प्रत्येक भक्त-श्याम प्रेमी यह अनुभव करता है मानों ये उसके ही हृदय के भाव हैं, उसके ही शब्द हैं।

श्रद्धेय भीमराजका जी की लेखनी पर मारवाड़ी के साथ ही हिन्दी और बृज भाषा पर भी उनका समान अधिकार था। गोपीभाव में डूबकर, सम्पूर्ण रात्रि जागकर, अपने प्रियतम की विरह-वेदना को सहकर जो भाव प्रस्कुटित हुये उनमें अपने आराध्य से मिलन की चाहत, छटपटाहट अवर्णनीय है। एक प्यासे चालक की भांति वो निरन्तर लखदातार को निहारते रहे, रूप माधुरी की दो बूंदों का आचमन करने के लिये। इनकी अधिकांश रचनायें, राजस्थानी लोक गीतो की तर्ज एवं मारवाडी राग-रागनीयों पर आधारित है तथा उनमें भावों का प्राबल्य और शब्दों के समावेश का क्रम इतना सुनियोजित है कि शुष्क ह्नदय वाला भक्त भी भावावेश में बहे बिना नहीं रह सकता। समय परिवर्तन के साथ आधुनिक पीढ़ी की सुगमता हेतु अनेकानेक भजन फिल्मी गीतों की तर्ज पर भी लिखे लेकिन उन्होंने यह विशेष ध्यान रखा कि गीत के शब्द या संगीत कही भी भजन पर हावी ना हो पायें। स्व0 भीमराज का लेखन शैली की विशेषता यह भी थी कि आप स्वयं गायन में निष्ंणात थे और संगीत का ज्ञान रखते थे।

खाटू नरेश बाबा श्याम के अतिरिक्त उन्होंने गणेश जी, हनुमान जी, दुर्गा मैया, भोलेनाथ, गुरूदेव पर भी अनेकानेक भजनों की रचना की। उनके द्वारा स्थापित संस्था श्री श्याम सरोवर प्रति वर्ष उनके द्वारा रचित 50 भजनों की पुस्तिका श्री श्याम अराधना का प्रकाशन करती रही है। वर्ष 1992 में संस्था के रजत जयन्ती उत्सव पर 500 भजनों का संग्रह प्रकाशित किया गया और 2016 में संस्था ने स्वर्ण जयन्ती वार्षिकोत्सव पर भी एक वृहद भजन संग्रह प्रकाशित किया है।

वर्ष 1988 में शिवचरण जी का पूरा परिवार जिसमें पुत्र कैलाश चन्द्र भीमराजका, पौत्र दीपक भीमराज का एवं पौत्रिया ज्योति, रजनी और पायल सम्मिलित थे, स्थाई रूप से अहमदाबाद में निवास करने लगे। अहमदाबाद में भी श्याम भजनों की अविरल भागीरथी प्रवाहित होने लगी। अहमदाबाद में भी काव्स्य सृजन और खाटू प्रवास का क्रम जारी रहा। अक्सर कलकत्ता और बम्बई के श्याम प्रेमी भी आग्रह पूर्वक उन्हें श्यामोत्सवों में ले जाते।

वर्ष 1996 के जुलाई माह (पुरूषोतम मास) में शिवचरण जी खाटू प्रवास पर थे। अपने अराध्य की नगरी में उनका दीवाना, उन्हीं के चरणो में समाने, खाटू की पावन रज में स्वयं को समाहित करने आ गया था। 08 जुलाई 1996 (आषाढ़ बदी नवमी) को श्याम प्रभु का लाडला श्याम देव की गोद में चिरनिद्रा में सो गया और नश्वर देह को श्याम चरणों में त्यागा। यह भी एक दुर्लभ संयोग ही कहा जायेगा कि जिस दिन उनके पूज्य पिता और माता श्री का अन्तिम संस्कार हुआ, उसी तिथि (आषाढ़ बदी नवमी) को उनके सुपुत्र की देह भी पंचतत्वों में विलीन हो गई। किसे मिल पाता है इतना पवित्र परोपकारी जीवन और इतना प्रेमास्पद स्पृहासिक्त मरण। कहते है मरण पर्व की महानता जिसने प्राप्त की उसी की जीवन यात्रा सफल मानी जाती है और इस मानदण्ड़ पर स्व. भीमराजका जी एक सफलतम व्यक्तित्व थे।

खाटू धाम में अहमदाबाद के केड़िया परिवार द्वारा निर्मित गोकुल धाम के प्रांगण में स्व0 भीरामजका जी का अन्तिम संस्कार किया गया और उसी स्थान पर उनकी स्मृति को चिर-स्थाई बनाने हेतु समाधि का निर्माण किया गया।

 

खाटू धाम बिराजते, होकर श्याम स्वरूप

भक्तराज की भक्ति यों, जुग-जुग बनी अनूप।।

 

एक सुरभित पुष्प मुरझा गया पर उसकी भीनी सौरभ चहूँ और फैल गई, दिग-दिगन्त श्याम प्रेमीजनों को उनकी रचनायें हँसाती, रूलाती और गुदगुदाती रहेगी, अनुरागीजनों का श्याम चरणों से सामीप्य बढ़ाती रहेगी। जब संसार से वे नितांत राग विराग मुक्त हो गए तो शब्द ब्रह्मा की उनकी साधना अधिकाधिक सार्थक होती चली गई। फिर तो उन्होंने इतने भजन बनाएं की कीर्तन कारों को कमी ही नहीं रह गई और आने वाले अनेक वर्षों तक भी कमी नहीं रहेगी क्योंकि साहित्य के सारे नोँ रस उनमें हैं जैसे श्रृंगार रस हेतु रति भाव के भजन अद्भुत रस हास्य रस आदि ।एव उनके व्यक्तित्व की भव्यता में अनेक सद्गुण उल्लेखित हो सकते है। हमने सभी ने अनुभव किया होगा कि कीर्तन आदि के समय कोई व्यक्ति कभी पाखंड भी कर लेता है और झूठे पर्चे भी देने लगता है तो इस असत्य के विरोध में उन्होंने निम्नलिखित पंक्तियां लिखी –

यात्री आवे दूर का , सै का अलग सवाल
झूठा पर्चा दे कोई ,बण सूं चालै चाल
बणने श्याम सुहावणों कदै न करसी माफ
जणे जणे नै लूट कै जो नई राखे धाप

इसलिए उनका विपुल भण्डार भक्ति रस के स्थाई भावों से लबालब भरा हुआ है। जिस भी भजन को उठाइए कवि ने इतनी उपमायें दी है कि मन खिल उठता है। उनके प्रत्येक भजन में विशालता प्रधान की गई है।

भक्त शिवचरण श्याम के श्याम भक्त के दास
बुला लिया था भक्त को प्रभु ने अपने पास
प्रभु ने अपने पास धाम खाटू बुलवा कर
कहा कार्य कुछ नही शेष अब जग में जाकर
तुम मेरे हो अंग मुझी में आय समाओ
निज समाधि का स्थान धाम गोकुल पूजवाओ

कान में मेरे किसी ने ये कहा
जिन्दगी फानी है,जग बेकार है

बस हुआ माया के क्यूँ नादाने दिल,
इस जहां मैं कौन तेरा यार है

है किलंगी मोर की माथे लगी,
वो तेरा आधार, लखदातार है

गूँजती मीठी अधर पर बाँसुरी,
वो मुरारी ही, तेरा दिलदार है

शान-ए-शौकत क्या बयां उसकी करूँ,
क्या मधुर मुस्कान का श्रृंगार है

श्यामबहादुर लड़ गई उससे नजर
शिव तेरी कश्ती हुई भव पार है

भक्त भगवान् के मिलन की अपेक्षा भगवान् के भजन को अधिक प्रिय समझता है। भजन जब जीवन बन जाता है । भजन ही पतवार बन जाती है भवसागर पार करने की इस प्रकार भजन जिसके जीवन का स्वभाव बन जाता है वह भजन है। अगर भजन न रहे तो जीवन न रहे। भगवान् की स्मृति ही जीवन है। प्रेम विरह ने रचित उनकी रचनाएं हमे श्री शिव चरण जी भीमराजका की श्री श्याम प्रभु के प्रति श्रद्धा एव भक्ति का अहसास करवाती है

मेरी निजी मान्यता है कि कलम का ऐसा धनी ना तो कोई हुआ है और ना ही निकट भविष्य में दृष्टव्य है। पिछले तीन वर्षों से भी अधिक समय से सोशल मीडिया द्वारा अनेकानेक भजन प्रेमीयों को जो रचनायें मैने प्रेषित की और प्रत्युत्तर स्वरूप जो स्नेह मुझे प्राप्त हुआ, वह सिद्ध करता हैं कि उनकी रचनायें सदैव प्रांसगिक रही है और रहेंगी। नमन् वन्दन ऐसे कालजयी भक्त कवि को।

आयो शिचरण सुणाय गयो बाँसुरी ही

खाटूवालै श्याम जी के रूप मं कन्हैये की

रचकै भजन, लोक-गीत, छन्द, गजल

पचकै परीक्षा है, कव्वाली कै गवैये की

भक्तगण आंवै, बाबा श्याम नै रिझावें, गन्ध

दूर तक आवै भोग चूरमैं सवैये की

आयगो बसन्त, गूज्ंयों गावणों दिगन्त, या है

महिमा अनन्त, भवसागर खिवैये की

 

वैसे तो उसकी रचनाओं को उल्लेखित करना, उन पर टीका करना या व्याख्या करना, मुझ जैसे साधारण, असाहित्यिक एवं व्यवसायी श्याम अनुरागी हेतु नितान्त दुष्कर है, तथापि यदि स्व. भीमराजका जी द्वारा सृजित श्याम सागर से कुछ मोती संकलन का दुस्साहस करूँ तो मेरी प्राथमिकतायें निम्न होगी-

1 चरणों का पुजारी हूँ, चौखट का भिखारी हूँ…………..

2 बोलो जी दयालु दिलदार के करूँ ……………..

3 यो पाण्डवकुल अवतार बड़ों अलबेलो है ………………….

4 तुम्हारी मेरी बात के जाणैगो कोई …………………………

5 हे बांके बिहारी लाल, मन्नै थारी याद सतावै है ……………………

6 हो रह्यों बाबा की नगरी मं, केसर-चन्दन को छिड़काव ………………..

7 दिल पर तेरी कन्हैया, तस्वीर बना ली है ……………………….

8 श्याम सुन्दर महर की नजर, दीन-दुखियों पे थोडी सी कर ………………………….

9 दिल दांव पर लगायो, नादान के कर्यों तूं …………………………

10 पागल बना दिया है, मुरली ने तेरी मोहन ………………………….

11 के बजरंग बाला नै, पवन कै लाला नै, कोटिन-कोटि प्रणाम …………………

12 गुरू बिना ज्ञान, ज्ञान बिन व्यक्ति, मिलणी है खाण्डै की धार ……………………

13 मेरी बीच भंवर में हैं, नैया कन्हैया पार करो ………………………..

14 माटी को खिलौणों हैं, मन मं जचाय ले ………………………………

15 नैनों से कर इशारा, पागल बना दिया …………………………..

 

आभार

श्री अनिल जी अग्रवाल (जयपुर)

 

।। श्री श्याम आशीर्वाद ।।
।। श्याम श्याम तो मैं रटू , श्याम यही जीवन प्राण ।।
।। श्याम भक्त जग में बड़े उनको करू प्रणाम ।।
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